भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सभ्य / प्रफुल्ल कुमार परवेज़" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रफुल्ल कुमार परवेज़ |संग्रह=संसार की धूप / प्र...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
20:05, 8 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण
वे सो जाते हैं
आती रहती हैं
पड़ौसी कमरे से
सिसकियाँ
उठता रहता है
मुहल्ले में शोर
क्रंदन आर्तनाद
जलता रहता है
लगाई गई गई आग में
गुस्सैल गरीब का घर
होता रहता है
सामुहिक बलात्कार
शहर के जंगल से ग़ुज़र कर
अपनी पोशाक से
झाड़् कर धूल
वो सो जाते हैं
किंचित नहीं पिघलती
ज़िंदा जलते
आदमी की आँच से
उनके अंदर की बर्फ़
नहीं पड़ता कोई फ़र्क़
वे सो जाते हैं