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"चेतावनी / प्रफुल्ल कुमार परवेज़" के अवतरणों में अंतर

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नकारते नहीं तुम
समर्थन की मुद्रा में
हिलाते हो सिर
जिसका मक़सद
सहमति भी नहीं होता

तुम्हारी भीड़ में
अकेला होता है आदमी
गवाही के ऐन मौके पर
तुम्हारी आँख
हो जाती है पीठ

तुम्हारा एक
से मिलकर
ग्यारह नहीं होता
यह अलग बात है
तुम्हारे एक से निरंतर
तक़्सीम होता है आदमी
सिफ़र नहीं होता

तुम सदैव होते हो वहाँ
जहाँ मिलाया जा सकता है एक हाथ उजाले से
दूसरे हाथ से अँधेरे को आश्वस्त
करवाया जा सकता है ओ भाई समझदार
तुम्हारे हाथों हो रही है पैनी
जिस हथियार की धार
तुमको भी काटेगी
अब की नहीं तो अगली बार

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