भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जब सूरज जग जाता है / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
  
 
आँखें मलकर धीरे-धीरे  
 
आँखें मलकर धीरे-धीरे  
 
 
 
सूरज जब जग जाता है ।
 
सूरज जब जग जाता है ।
 
 
 
सिर पर रखकर पाँव अँधेरा  
 
सिर पर रखकर पाँव अँधेरा  
 
 
 
चुपके से भग जाता है ।
 
चुपके से भग जाता है ।
 
  
 
हौले से मुस्कान बिखेरी  
 
हौले से मुस्कान बिखेरी  
 
 
 
पात सुनहरे हो जाते ।
 
पात सुनहरे हो जाते ।
 
 
 
डाली-डाली फुदक-फुदक कर
 
डाली-डाली फुदक-फुदक कर
 
 
 
सारे पंछी हैं गाते ।
 
सारे पंछी हैं गाते ।
 
  
 
थाल भरे मोती ले करके
 
थाल भरे मोती ले करके
 
 
 
धरती स्वागत करती है ।
 
धरती स्वागत करती है ।
 
 
 
नटखट किरणें वन-उपवन में
 
नटखट किरणें वन-उपवन में
 
 
 
खूब चौंकड़ी भरती हैं ।
 
खूब चौंकड़ी भरती हैं ।
 
  
 
कल-कल बहती हुई नदी में  
 
कल-कल बहती हुई नदी में  
 
 
 
सूरज खूब नहाता है
 
सूरज खूब नहाता है
 
 
 
कभी तैरता है लहरों पर
 
कभी तैरता है लहरों पर
 
 
 
डुबकी कभी लगाता है । <br>
 
डुबकी कभी लगाता है । <br>
 
पर्वत –घाटी पार करे<br>
 
पर्वत –घाटी पार करे<br>
पंक्ति 65: पंक्ति 38:
 
हमें उजाला दे करके<br>
 
हमें उजाला दे करके<br>
  
कभी नहीं कुछ लेता है <br>
+
कभी नहीं कुछ लेता है <br>

19:43, 9 फ़रवरी 2009 का अवतरण

आँखें मलकर धीरे-धीरे सूरज जब जग जाता है । सिर पर रखकर पाँव अँधेरा चुपके से भग जाता है ।

हौले से मुस्कान बिखेरी पात सुनहरे हो जाते । डाली-डाली फुदक-फुदक कर सारे पंछी हैं गाते ।

थाल भरे मोती ले करके धरती स्वागत करती है । नटखट किरणें वन-उपवन में खूब चौंकड़ी भरती हैं ।

कल-कल बहती हुई नदी में सूरज खूब नहाता है कभी तैरता है लहरों पर डुबकी कभी लगाता है ।
पर्वत –घाटी पार करे

मैदानों में चलता है ।

दिनभर चलकर थक जाता

साँझ हुए फिर ढलता है ।

नींद उतरती आँखों में

फिर सोने चल देता है ।

हमें उजाला दे करके

कभी नहीं कुछ लेता है ।