भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"लबरेज़ है शराब-ए-हक़ीक़त / अल्लामा इक़बाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इक़बाल }} <poem> लबरेज़ है शराब-ए-हक़ीक़त से जाम-ए-हि...)
 
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
 
सब फ़लसफ़ी हैं खि़त्त-ए-मग़रिब के राम-ए-हिन्द
 
सब फ़लसफ़ी हैं खि़त्त-ए-मग़रिब के राम-ए-हिन्द
  
ये हिन्दियों के फि़क्र-ए-फ़लक रस का है असर
+
ये हिन्दियों के फ़िक्र-ए-फ़लक रस का है असर
 
रिफ़त में आसमाँ से भी ऊँचा है बाम-ए‍-हिन्द
 
रिफ़त में आसमाँ से भी ऊँचा है बाम-ए‍-हिन्द
  
 
इस देस में हुए हैं हज़ारों मलक सरिश्त
 
इस देस में हुए हैं हज़ारों मलक सरिश्त
मशहूर जिन के दम से है दुनिया में नाम-ए-हिन्द है
+
मशहूर जिन के दम से है दुनिया में नाम-ए-हिन्द
  
राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज
+
है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज
 
अहल-ए-नज़र समझते हैं इस को इमाम-ए-हिन्द
 
अहल-ए-नज़र समझते हैं इस को इमाम-ए-हिन्द
  

07:48, 10 फ़रवरी 2009 का अवतरण


लबरेज़ है शराब-ए-हक़ीक़त से जाम-ए-हिन्द
सब फ़लसफ़ी हैं खि़त्त-ए-मग़रिब के राम-ए-हिन्द

ये हिन्दियों के फ़िक्र-ए-फ़लक रस का है असर
रिफ़त में आसमाँ से भी ऊँचा है बाम-ए‍-हिन्द

इस देस में हुए हैं हज़ारों मलक सरिश्त
मशहूर जिन के दम से है दुनिया में नाम-ए-हिन्द

है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज
अहल-ए-नज़र समझते हैं इस को इमाम-ए-हिन्द

एजाज़ इस चिराग़-ए-हिदायत का है यही
रोशन तर अज सहर है ज़माने में शाम-ए-हिन्द

तलवार का धनी था, शुजाअत में फ़र्द था
पाकिज़गी में, जोश-ए-मोहब्बत में फ़र्द था