भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"क्यों घर में हो / शक्ति चटोपाध्याय" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: बंद पड़े हैं दरवाजे सोया हुआ है सारा मुहल्ला सिर्फ कभी-कभी सुनाई...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
09:48, 10 फ़रवरी 2009 का अवतरण
बंद पड़े हैं दरवाजे सोया हुआ है सारा मुहल्ला सिर्फ कभी-कभी सुनाई पड़ती है रात की दस्तक- 'अवनि' घर में हो ?
बारह मास यहां वर्षा होती है बारहों मास यहां उमड़ते-घुमड़ते हैं मेघ चरती हुई गाय की तरह गंदी नाली में उगी घास ने बढ़कर छेंक लिया है समूचे दरवाजे को- 'अवनि' घर में हो ?
भरे हुए मन से फैले हुए दुखों के बीच मैं सो जाता हूं लगाकर बिस्तर कि अचानक सुनता हूं फिर वही दस्तक- 'अवनि' घर में हो ?