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"क्यों घर में हो / शक्ति चटोपाध्याय" के अवतरणों में अंतर
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+ | '''अनुवाद - गिरीश श्रीवास्तव | ||
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15:45, 10 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण
बंद पड़े हैं दरवाज़े
सोया हुआ है सारा मुहल्ला
सिर्फ़ कभी-कभी सुनाई पड़ती है
रात की दस्तक-
'अवनि' घर में हो ?
बारह मास यहाँ वर्षा होती है
बारहों मास यहां उमड़ते-घुमड़ते हैं मेघ
चरती हुई गाय की तरह
गंदी नाली में उगी घास ने
बढ़कर छेंक लिया है समूचे दरवाज़े को-
'अवनि' घर में हो ?
भरे हुए मन से
फैले हुए दुखों के बीच
मैं सो जाता हूँ लगाकर बिस्तर
कि अचानक सुनता हूँ फिर वही दस्तक-
'अवनि' घर में हो ?
अनुवाद - गिरीश श्रीवास्तव