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"कभी तो कुछ दे नहीं पाया / सौरीन्‍द्र बारिक" के अवतरणों में अंतर

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कभी तो कुछ दे नहीं पाया
 
कभी तो कुछ दे नहीं पाया
 
क्‍या देता,मेरे पास क्‍या है देने के लिए
 
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एक कविता लिखी है, पढोगी
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एक कविता लिखी है, पढ़ोगी
  
 
तुम कौन हो
 
तुम कौन हो
 
डाइन, चुड़ैल या प्रेतिनी
 
डाइन, चुड़ैल या प्रेतिनी
बूढी मालिन अथवा कोई राक्षसी
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बूढ़ी मालिन अथवा कोई राक्षसी
जब से तुम आयी हो तभी से
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कुछ हो गया है मुझे
 
कुछ हो गया है मुझे
  
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कौन सा जादू किया कि
 
कौन सा जादू किया कि
सारी की सारी चीजें
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सारी की सारी चीज़ें
कुछ अलग अलग सी लगने लगीं
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उस अलगाव में तुम ही सामने आयी
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किसी तनहाई की मनमोहक बात
 
किसी तनहाई की मनमोहक बात
मेरे रक्‍तकण में भर गयी
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कविता एक लिखी है
 
कविता एक लिखी है
जरा पढोगी
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जरा पढ़ोगी
  
अनुवाद - वनमाली दास
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'''अनुवाद - वनमाली दास
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15:48, 10 फ़रवरी 2009 का अवतरण

कभी तो कुछ दे नहीं पाया
क्‍या देता,मेरे पास क्‍या है देने के लिए
एक कविता लिखी है, पढ़ोगी

तुम कौन हो
डाइन, चुड़ैल या प्रेतिनी
बूढ़ी मालिन अथवा कोई राक्षसी
जब से तुम आई हो तभी से
कुछ हो गया है मुझे

सब कुछ बदल गया है

कौन सा जादू किया कि
सारी की सारी चीज़ें
कुछ अलग-अलग सी लगने लगीं
उस अलगाव में तुम ही सामने आईं
किसी तनहाई की मनमोहक बात
मेरे रक्‍तकण में भर गईं

यह कौन सा दान है
जिसकी चीज़ उसे लौटा देना
कभी तो कुछ दे न पाया
कविता एक लिखी है
जरा पढ़ोगी

अनुवाद - वनमाली दास