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21:37, 11 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण

तुम सड़क पर चलते वक़्त
धरती पर
पड़ रही
अपनी परछाईं को भी
खुरचकर
अपने से दूर करना चाहते हो

तन्हाई की बंद-खुली
दरारों
में से
गुज़रना चाहते हो

श्मशान की गन्ध को
ज़िन्दा साँसों में भरना चाहते हो
दोस्त-- तुम इतने अकेले होकर क्यूँ मरना चाहते हो?