भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अकेले होकर / नवीन नीर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवीन नीर |संग्रह= }} <Poem> तुम सड़क पर चलते वक़्त धरत...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
21:37, 11 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण
तुम सड़क पर चलते वक़्त
धरती पर
पड़ रही
अपनी परछाईं को भी
खुरचकर
अपने से दूर करना चाहते हो
तन्हाई की बंद-खुली
दरारों
में से
गुज़रना चाहते हो
श्मशान की गन्ध को
ज़िन्दा साँसों में भरना चाहते हो
दोस्त-- तुम इतने अकेले होकर क्यूँ मरना चाहते हो?