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"दाग़ / भागवतशरण झा 'अनिमेष'" के अवतरणों में अंतर

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22:12, 11 फ़रवरी 2009 का अवतरण

चेहरे पर
चेचक के दाग़
भले ही
नहीं लगते हैं अच्छे
मगर वे
संत की तरह
मन की व्यथा कहते हैं

दाग़
हमेशा सामनेवालों से
करते हैं अर्ज़
मेरे भीतर
झाँक कर देखो
हो सके तो
पा लो ऎसी दीद
जो देख सके बेदाग़ दिल
दिखा सके दिल के दाग़।