भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हँस रहा हूँ मैं / विजय सिंह" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय सिंह |संग्रह= }} <Poem> '''सूरज के लिए पल-पल मुश्कि...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
22:36, 11 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण
सूरज के लिए
पल-पल मुश्किल समय में
अकेला नहीं हूँ
सूरज की हँसी है
मेरे पास
सूरज की हँसी
तीरथगढ़ का जलप्रपात है
जहाँ मैं डूबता-उतराता हूँ
और भूल जाता हूँ
अपनी थकान
सूरज हँस रहा है
हँस रहा है घर
हँस रहा है आस-पड़ोस
हँस रहे हैं लोग-बाग
हँस रहे हैं आसमान में उड़ते पक्षी
हँस रहा हूँ मैं
हँस रही है पृथ्वी इस समय।