भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आत्मावलोकन / जगदीश नलिन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जगदीश नलिन |संग्रह= }} <Poem> मुझे मत ले चलो तुम पाल ल...)
 
(कोई अंतर नहीं)

20:52, 13 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण

मुझे मत ले चलो
तुम पाल लगी नाव में
हवा की मरज़ी पर चलना
मुझे गँवारा नहीं

हो सके तो छोड़ दो तुम
तट पर अकेला मुझे
शायद मैं कोई वाज़िब
विकल्प तज़वीज कर लूँ

गर आमादा हो तुम
अपनी जवाँमर्दी के बूते
हवा की आवारगियाँ झेलने
और मुझे पार ले जाने पर
तो ठीक है ले चलो

आगे भँवर का पता है मुझे
बरसों पुराना रिश्ता है उससे
दो-दो हाथ करने का
यह मौसम ख़ुशनुमा है
और अहसास करने का भी
कि मुझमें जान का कोई क़तरा
अभी भी शेष है क्या?

हवा का क्या भरोसा
कभी भी रुख बदल लेती है वह
पाल नीचे गिरा दो तुम
और थाम लो पतवार

आओ हम अपनी खस्ता हाल बाहों को समझ लें
दमदार हहराती लहरों से
टकराने का दम उनमें
किस हद तक कम हो गया है।