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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=बशीर बद्र]][[Category:कविताएँ]]}}[[Category:गज़लग़ज़ल]][[Category:बशीर बद्र]]<poem>मान मौसम का कहा, छाई घटा, जाम उठाआग से आग बुझा, फूल खिला, जाम उठा
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~पी मेरे यार तुझे अपनी क़सम देता हूँभूल जा शिकवा-गिला, हाथ मिला, जाम उठा
मान मौसम का कहा, छाई घटा, हाथ में जाम उठा <br>जहाँ आया मुक़द्दर चमकाआग से आग बुझा, फूल खिलासब बदल जायेगा क़िस्मत का लिखा, जाम उठा <br><br>
पी मेरे यार तुझे अपनी क़सम देता हूँ <br>एक पल भी कभी हो जाता है सदियों जैसाभूल जा शिकवा-गिलादेर क्या करना यहाँ, हाथ मिलाबढा़, जाम उठा <br><br>
हाथ में जाम जहाँ आया मुक़द्दर चमका <br>सब बदल जायेगा क़िस्मत का लिखा जाम उठा <br><br> एक पल भी कभी हो जाता है सदियों जैसा <br>देर क्या करना यहाँ, हाथ बड़ा, जाम उठा <br><br> प्यार ही प्यार है सब लोग बराबर हैं यहाँ <br>मैकदे में कोई छोटा न बड़ा, जाम उठा <br><br/poem>