भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"नीली चमकीली तान / लीलाधर मंडलोई" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लीलाधर मंडलोई |संग्रह=रात-बिरात / लीलाधर मंडलोई ...)
 
(कोई अंतर नहीं)

00:21, 15 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण

कुछ है ज़रूर कि हवा अबेरती है
किसी ढिग लगे घर की यह टटकी गन्ध

निकली हो कोई लड़कोरी कुँआ पूजने शायद
किलका हो कहीं नवजात शिशु कजरौटा
अगुवाई की बेरा हो जैसे फूलचौक पर किसी स्त्री की

घिनौची में फूटती है हरी-हरी दूब
आँखें खोल रही हैं भीत पर पीपल की फुनगियाँ

कहीं भीतर कोमल जड़ों के उत्स पर
टहलती लोरी की उनींदी टेर

कुछ है ज़रूर कि समय डूबा है हर कहीं हाहाकार में जब
किसी बच्चे की दस्तक है यह आसमान पर कि
उठती है मधुरला की नीली चमकीली तान


सन्दर्भ :

मध्ररला= बुन्देलखण्ड में गाए जाने वाले सोहर का प्रकार। ’मधुरला’ मंगलकामना का बुन्देली गीत है।