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"ठोकरों से मंज़िलें आबाद होकर रह गईं / प्रभा दीक्षित" के अवतरणों में अंतर

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19:42, 15 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण

ठोकरों से मंज़िलें आबाद होकर रह गईं
कशमकश में ज़िन्दगी बरबाद होकर रह गई।

आपसे किसने कहा था चाँद छूने के लिए
शायरी वर्जित फलों का स्वाद होकर रह गई।

सांझ के ढलने से पहले कौन पंछी चीख़ता था
क्रौंच-वध की फिर नई फ़रियाद होकर रह गई।

घोंसलें किस पर बनाएँ पेड़ जब कटने लगे
वक़्त की बुलबुल यहाँ अवसाद होकर रह गई।

दोस्ती का लुत्फ़ इतना ही उठा पाए हैं हम
दुश्मनी भी एक भली-सी याद होकर रह गई।

पहनती है एक उदासी मुस्कुराहट का लिबास
जब ग़ज़ल हर दर्द का अनुवाद होकर रह गई।