"कुररी के प्रति / मुकुटधर पांडेय" के अवतरणों में अंतर
छो |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार=मुकुटधर पांडेय | ||
+ | |संग्रह= | ||
+ | }} | ||
[[Category:कविताएँ]] | [[Category:कविताएँ]] | ||
− | + | <Poem> | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
बता मुझे ऐ विहग विदेशी अपने जी की बात | बता मुझे ऐ विहग विदेशी अपने जी की बात | ||
− | |||
पिछड़ा था तू कहाँ, आ रहा जो कर इतनी रात | पिछड़ा था तू कहाँ, आ रहा जो कर इतनी रात | ||
− | |||
निद्रा में जा पड़े कभी के ग्राम-मनुज स्वच्छंद | निद्रा में जा पड़े कभी के ग्राम-मनुज स्वच्छंद | ||
− | |||
अन्य विहग भी निज नीड़ों में सोते हैं सानन्द | अन्य विहग भी निज नीड़ों में सोते हैं सानन्द | ||
− | |||
इस नीरव घटिका में उड़ता है तू चिन्तित गात | इस नीरव घटिका में उड़ता है तू चिन्तित गात | ||
− | |||
पिछड़ा था तू कहाँ, हुई क्यों तुझको इतनी रात ? | पिछड़ा था तू कहाँ, हुई क्यों तुझको इतनी रात ? | ||
− | |||
− | |||
देख किसी माया प्रान्तर का चित्रित चारु दुकूल ? | देख किसी माया प्रान्तर का चित्रित चारु दुकूल ? | ||
− | |||
क्या तेरा मन मोहजाल में गया कहीं था भूल ? | क्या तेरा मन मोहजाल में गया कहीं था भूल ? | ||
− | |||
क्या उसका सौन्दर्य-सुरा से उठा हृदय तव ऊब ? | क्या उसका सौन्दर्य-सुरा से उठा हृदय तव ऊब ? | ||
− | |||
या आशा की मरीचिका से छला गया तू खूब ? | या आशा की मरीचिका से छला गया तू खूब ? | ||
− | |||
या होकर दिग्भ्रान्त लिया था तूने पथ प्रतिकूल ? | या होकर दिग्भ्रान्त लिया था तूने पथ प्रतिकूल ? | ||
− | |||
किसी प्रलोभन में पड़ अथवा गया कहीं था भूल ? | किसी प्रलोभन में पड़ अथवा गया कहीं था भूल ? | ||
− | |||
− | |||
अन्तरिक्ष में करता है तू क्यों अनवरत बिलाप ? | अन्तरिक्ष में करता है तू क्यों अनवरत बिलाप ? | ||
− | |||
ऐसी दारुण व्यथा तुझे क्या है किसका परिताप ? | ऐसी दारुण व्यथा तुझे क्या है किसका परिताप ? | ||
− | |||
किसी गुप्त दुष्कृति की स्मृति क्या उठी हृदय में जाग | किसी गुप्त दुष्कृति की स्मृति क्या उठी हृदय में जाग | ||
− | |||
जला रही है तुझको अथवा प्रिय वियोग की आग ? | जला रही है तुझको अथवा प्रिय वियोग की आग ? | ||
− | |||
शून्य गगन में कौन सुनेगा तेरा विपुल विलाप ? | शून्य गगन में कौन सुनेगा तेरा विपुल विलाप ? | ||
− | |||
बता कौन सी व्यथा तुझे है, है किसका परिताप ? | बता कौन सी व्यथा तुझे है, है किसका परिताप ? | ||
− | |||
− | |||
यह ज्योत्सना रजनी हर सकती क्या तेरा न विषाद ? | यह ज्योत्सना रजनी हर सकती क्या तेरा न विषाद ? | ||
− | |||
या तुझको निज-जन्मभूमि की सता रही है याद ? | या तुझको निज-जन्मभूमि की सता रही है याद ? | ||
− | |||
विमल व्योम में टँगे मनोहर मणियों के ये दीप | विमल व्योम में टँगे मनोहर मणियों के ये दीप | ||
− | |||
इन्द्रजाल तू उन्हें समझ कर जाता है न समीप | इन्द्रजाल तू उन्हें समझ कर जाता है न समीप | ||
− | |||
यह कैसा भय-मय विभ्रम है कैसा यह उन्माद ? | यह कैसा भय-मय विभ्रम है कैसा यह उन्माद ? | ||
− | |||
नहीं ठहरता तू, आई क्या तुझे गेह की याद ? | नहीं ठहरता तू, आई क्या तुझे गेह की याद ? | ||
− | |||
− | |||
कितनी दूर कहाँ किस दिशि में तेरा नित्य निवास | कितनी दूर कहाँ किस दिशि में तेरा नित्य निवास | ||
− | |||
विहग विदेशी आने का क्यों किया यहाँ आयास | विहग विदेशी आने का क्यों किया यहाँ आयास | ||
− | |||
वहाँ कौन नक्षत्र–वृन्द करता आलोक प्रदान ? | वहाँ कौन नक्षत्र–वृन्द करता आलोक प्रदान ? | ||
− | |||
गाती है तटिनी उस भू की बता कौन सा गान ? | गाती है तटिनी उस भू की बता कौन सा गान ? | ||
− | |||
कैसा स्निग्ध समीरण चलता कैसी वहाँ सुवास | कैसा स्निग्ध समीरण चलता कैसी वहाँ सुवास | ||
− | |||
किया यहाँ आने का तूने कैसे यह आयास ? | किया यहाँ आने का तूने कैसे यह आयास ? | ||
− | (सरस्वती, जुलाई, 1920) | + | '''(सरस्वती, जुलाई, 1920) |
+ | </poem> |
00:03, 16 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण
बता मुझे ऐ विहग विदेशी अपने जी की बात
पिछड़ा था तू कहाँ, आ रहा जो कर इतनी रात
निद्रा में जा पड़े कभी के ग्राम-मनुज स्वच्छंद
अन्य विहग भी निज नीड़ों में सोते हैं सानन्द
इस नीरव घटिका में उड़ता है तू चिन्तित गात
पिछड़ा था तू कहाँ, हुई क्यों तुझको इतनी रात ?
देख किसी माया प्रान्तर का चित्रित चारु दुकूल ?
क्या तेरा मन मोहजाल में गया कहीं था भूल ?
क्या उसका सौन्दर्य-सुरा से उठा हृदय तव ऊब ?
या आशा की मरीचिका से छला गया तू खूब ?
या होकर दिग्भ्रान्त लिया था तूने पथ प्रतिकूल ?
किसी प्रलोभन में पड़ अथवा गया कहीं था भूल ?
अन्तरिक्ष में करता है तू क्यों अनवरत बिलाप ?
ऐसी दारुण व्यथा तुझे क्या है किसका परिताप ?
किसी गुप्त दुष्कृति की स्मृति क्या उठी हृदय में जाग
जला रही है तुझको अथवा प्रिय वियोग की आग ?
शून्य गगन में कौन सुनेगा तेरा विपुल विलाप ?
बता कौन सी व्यथा तुझे है, है किसका परिताप ?
यह ज्योत्सना रजनी हर सकती क्या तेरा न विषाद ?
या तुझको निज-जन्मभूमि की सता रही है याद ?
विमल व्योम में टँगे मनोहर मणियों के ये दीप
इन्द्रजाल तू उन्हें समझ कर जाता है न समीप
यह कैसा भय-मय विभ्रम है कैसा यह उन्माद ?
नहीं ठहरता तू, आई क्या तुझे गेह की याद ?
कितनी दूर कहाँ किस दिशि में तेरा नित्य निवास
विहग विदेशी आने का क्यों किया यहाँ आयास
वहाँ कौन नक्षत्र–वृन्द करता आलोक प्रदान ?
गाती है तटिनी उस भू की बता कौन सा गान ?
कैसा स्निग्ध समीरण चलता कैसी वहाँ सुवास
किया यहाँ आने का तूने कैसे यह आयास ?
(सरस्वती, जुलाई, 1920)