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"अपनी आसन्नप्रसवा माँ के लिए / काँच के टुकड़े / अशोक वाजपेयी" के अवतरणों में अंतर

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00:26, 16 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण

काँच के आसमानी टुकड़े
और उन पर बिछलती सूर्य की करुणा
तुम उन सबको सहेज लेती हो
क्योंकि तुम्हारी अपनी खिड़की के
आठों काँच सुरक्षित हैं
और सूर्य की करूणा
तुम्हारे मुँडेरों भी
रोज बरस जाती है।