भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"युवा जंगल / अशोक वाजपेयी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अशोक वाजपेयी }} <poem> एक युवा जंगल मुझे, अपनी हरी पत...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
00:50, 16 फ़रवरी 2009 का अवतरण
एक युवा जंगल मुझे,
अपनी हरी पत्तियों से बुलाता है।
मेरी शिराओं में हरा रक्त बहने लगा है
आँखों में हरी परछाइयाँ फिसलती हैं
कंधों पर एक हरा आकाश ठहरा है
होंठ मेरे एक हरे गान में काँपते हैं :
मैं नहीं हूँ और कुछ
बस एक हरा पेड़ हूँ
– हरी पत्तियों की एक दीप्त रचना!
ओ युवा जंगल
बुलाते हो
आता हूँ
एक हरे बसंत में डूबा हुआ
आऽताऽ हूं...।
(1959)