"जो था दिल का दौर गया / जगन्नाथ आज़ाद" के अवतरणों में अंतर
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− | जो था दिल का दौर गया मगर है नज़र में अब भी वो अंजुमन | + | <poem> |
− | वो खयाल-ए-दोस्त चमन चमन, वो जमाल-ए-दोस्त बदन बदन | + | जो था दिल का दौर गया मगर है नज़र में अब भी वो अंजुमन |
+ | वो खयाल-ए-दोस्त चमन चमन, वो जमाल-ए-दोस्त बदन बदन | ||
− | अभी इब्तिदा-ए-हयात है, अभी दूर मंजिल-ए-इश्क है | + | अभी इब्तिदा-ए-हयात है, अभी दूर मंजिल-ए-इश्क है |
− | अभी मौज-ए-खून है, नफस नफस, अभी ज़िन्दगी है कफन कफन | + | अभी मौज-ए-खून है, नफस नफस, अभी ज़िन्दगी है कफन कफन |
− | मेरे हम-नफस गया दौर जब फकत आशियानो | + | मेरे हम-नफस गया दौर जब फकत आशियानो की बात थी |
− | के है आज बर्क की राअ में, मेरा भी चमन तेरा भी चमन | + | के है आज बर्क की राअ में, मेरा भी चमन तेरा भी चमन |
− | तेरे बहर-ए-बख्शीश-ओ-लुत्फ जो कभी हुई थी अता मुझे | + | तेरे बहर-ए-बख्शीश-ओ-लुत्फ जो कभी हुई थी अता मुझे |
− | मेरे दिल में है वही तशन्गी, मेरी रूह में है वही जलन | + | मेरे दिल में है वही तशन्गी, मेरी रूह में है वही जलन |
− | + | न तेरी नज़र में जँचे कभी, गुल-ओ-गुन्चा में जो है दिलकशी | |
− | जो तू इत्तेफाक से देख ले कभी, खार में है जो बाँकपन | + | जो तू इत्तेफाक से देख ले कभी, खार में है जो बाँकपन |
− | ये ज़मीं और उसकी | + | ये ज़मीं और उसकी वसीयतें, न मेरी बनें न तेरी बनें |
− | मगर इस पे भी ये है ज़िद हमें, ये तेरा वतन वो मेरा वतन | + | मगर इस पे भी ये है ज़िद हमें, ये तेरा वतन वो मेरा वतन |
− | वही मैं | + | वही मैं हूँ जिसका हर एक शेर एक आरज़ू का मजार है |
− | कभी वो भी दिन थे के जिन दिनों, मेरी हर गज़ल थी दुल्हन दुलहन | + | कभी वो भी दिन थे के जिन दिनों, मेरी हर गज़ल थी दुल्हन दुलहन |
− | ये नहीं के बज्म-ए-तरब में अब कोई नगमा-ज़न | + | ये नहीं के बज्म-ए-तरब में अब कोई नगमा-ज़न ही न रहा |
− | मैं अकेला इस लिये रह गया के बदल गय़ी है वो अंजुमन | + | मैं अकेला इस लिये रह गया के बदल गय़ी है वो अंजुमन |
− | मेरी शायरी है छुपी | + | मेरी शायरी है छुपी हुई मेरी ज़िन्दगी के हिजाब में |
− | ये हिजाब | + | ये हिजाब उठे तो अजब नहीं पड़े मुझ पे भी निगाह-ए-वतन |
− | वो अजीब शेर-ए-फ़िराक था के है रूह आलम-ए-वज्द में | + | वो अजीब शेर-ए-फ़िराक था के है रूह आलम-ए-वज्द में |
वो निगाह-ए-नाज़ जुबाँ जुबाँ, वो सुकूत-ए-नाज़ सुखन सुखन | वो निगाह-ए-नाज़ जुबाँ जुबाँ, वो सुकूत-ए-नाज़ सुखन सुखन | ||
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19:03, 16 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण
जो था दिल का दौर गया मगर है नज़र में अब भी वो अंजुमन
वो खयाल-ए-दोस्त चमन चमन, वो जमाल-ए-दोस्त बदन बदन
अभी इब्तिदा-ए-हयात है, अभी दूर मंजिल-ए-इश्क है
अभी मौज-ए-खून है, नफस नफस, अभी ज़िन्दगी है कफन कफन
मेरे हम-नफस गया दौर जब फकत आशियानो की बात थी
के है आज बर्क की राअ में, मेरा भी चमन तेरा भी चमन
तेरे बहर-ए-बख्शीश-ओ-लुत्फ जो कभी हुई थी अता मुझे
मेरे दिल में है वही तशन्गी, मेरी रूह में है वही जलन
न तेरी नज़र में जँचे कभी, गुल-ओ-गुन्चा में जो है दिलकशी
जो तू इत्तेफाक से देख ले कभी, खार में है जो बाँकपन
ये ज़मीं और उसकी वसीयतें, न मेरी बनें न तेरी बनें
मगर इस पे भी ये है ज़िद हमें, ये तेरा वतन वो मेरा वतन
वही मैं हूँ जिसका हर एक शेर एक आरज़ू का मजार है
कभी वो भी दिन थे के जिन दिनों, मेरी हर गज़ल थी दुल्हन दुलहन
ये नहीं के बज्म-ए-तरब में अब कोई नगमा-ज़न ही न रहा
मैं अकेला इस लिये रह गया के बदल गय़ी है वो अंजुमन
मेरी शायरी है छुपी हुई मेरी ज़िन्दगी के हिजाब में
ये हिजाब उठे तो अजब नहीं पड़े मुझ पे भी निगाह-ए-वतन
वो अजीब शेर-ए-फ़िराक था के है रूह आलम-ए-वज्द में
वो निगाह-ए-नाज़ जुबाँ जुबाँ, वो सुकूत-ए-नाज़ सुखन सुखन