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"कहकहों की तरह चटक पत्ते / रवीन्द्रनाथ त्यागी" के अवतरणों में अंतर
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कहकहों की तरह चटक पत्ते पेड़ ने पहिने
पीले फूलों के खेत में खड़ा हो गया
दिन का हरिण
छींट का रुमाल जेब में रखे
किसी रईसजादे की तरह
बसन्त निकल पड़ा
रात कोई जंगलों में हँसा।