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स्मृति और विस्मृति / सौरीन्द्र बारिक
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|रचनाकार=सौरीन्द्र बारिक
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विस्मृति की अंधी गली में
स्मृति के दो बत्तीवाले स्तम्भ
एक है तुमसे मिलन
दूसरा है विदा।
'''मूल उड़िया से अनुवाद - वनमाली दास
</poem>
अनिल जनविजय
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