भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ऐसा लगता है / सुदर्शन वशिष्ठ" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुदर्शन वशिष्ठ |संग्रह=जो देख रहा हूँ / सुदर्शन ...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
02:56, 18 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण
ऐसा लगता है
हमदम मेरा आ रहा है
बेखटके।
ऐसा लगता है
सड़कों पर मुस्टंडे पहरा दे रहे हैं
दीवारों की जगह शीशे लगे हैं
ऐसा लगता है
सरकार नाम की कोई चीज़ नहीं है
गुंडे और लफंगे चला रहे हैं शासन
ऐसा लगता है
समाज में कोई गम्भीर बीमारी है
जो बैठी है भीतर
आतंकवादी की तरह
ऐसा लगता है
युद्ध होगा
दागी जाएंगी मिसाइलें
उन ठिकानों पर
जो युद्ध में शामिल नहीं।
ऐसा भी नहीं लगता
कि सभी हो गये हो बेईमान
सभी हों चोर-उचक्के
कहीं ईमान भी बचा होगा
बर्फ़ में दबी आग की मानिंद।
सदा जीत हो बुराई की
ऐसा भी नहीं है
तभी तो कभी इंतजार रहता है
कि हमदम मेरा आ रहा है।