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"बाँसुरी कृष्ण की / अवतार एनगिल" के अवतरणों में अंतर
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एक बार ऐसा हआ
कि आदाश और ईश्वर
कृष्ण की बाँसुरी के पोर में
इक-दूजे से मिले
मिले, औ'मिलते ही
तरल धुन बनकर बहने लगे
...ऐसा हुआ
कि भक्ति और भाव
राधिका के कदमों की ठुमक में
इकट्ठे हुए
...फिर क्या, थिरकन बनकर
उसके चहुँ ओर नृत्य करने लगे।
अरे ओ, अहेरी मन!
बाँसुरी भी वही तो बजायेगा न
जिसके भीतर
नक्षत्रों को स्वर बनकर
नाचता हुआ आकाश
आकर स्वयं समा जाएगा
जब कभी आकाश और ईश्वर
बाँसुरी में
धुन बनकर बहेंगे
जब कभी भक्ति और भाव
राधिका बन थिरकेंगे
अनंत नृत्य होगा
होगा अनंत नृत्य
नाचेंगे हम लगातार
लगातार नाचेंगे हम।