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जाने कब किस मोड़ परकिस भेस में मिल जाये बहुरूपियाहे पुत्री!
जाने कब वहकितने युगबादल पुतेयह कायर पिताकाले आकाश से उतरेतुम्हारा वध करता रहाऔर कहे--अपने ही लहू की चलें?सच्चाई से डरता रहा
जाने कब किसी चमचमाते धवल दिन हे पुत्री!वह बाज़ की मानिंद गिरेरखना याद और झपट ले जब कभी तुम इस नन्हीं चिड़िया कोजनक सेबीचों-बीच मिलने आओगीहवा में इसे संपूर्ण प्राणों सेअपनी ही लुका-छिपी के इस खेल में तुम्हारा बहुरूपिया जाने कबसिपाही बनकर आयेइस चोर की घिग्घी बँधेवह इस काँपती कलाई पर हाथ धरेऔर हँसकर कहे:पकड़ लिया न!प्रतीक्षा करने पाओगी
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