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&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक:'''जिसकी हममें कमी है, दोस्तो!<br>
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&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक:'''मांझी ! न बजाओ बंशी<br>
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[आंद्री पिअर]] (स्विस कवि)
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[केदारनाथ अग्रवाल]]  
 
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जिसकी हममें कमी है, दोस्तो!
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मांझी ! न बजाओ बंशी मेरा मन डोलता
वह है साहस
+
  
उस समय बोलने का साहस
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मेरा मन डोलता है जैसे जल डोलता
जब शब्द जल रहे हों;
+
 
पत्थर को पत्थर कहने का
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जल का जहाज जैसे पल-पल डोलता
ख़ून को ख़ून
+
 
और डर को डर
+
मांझी ! न बजाओ बंशी मेरा प्रन टूटता
 +
 
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मेरा प्रन टूटता है जैसे तृन टूटता
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तृन का निवास जैसे बन-बन टूटता
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मांझी ! न बजाओ बंशी मेरा तन झूमता
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मेरा तन झूमता है तेरा तन झूमता
 +
 
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मेरा तन तेरा तन एक बन झूमता ।
  
एक दिन, जब वह बड़ी बर्फ़ आएगी
 
हहराती हुई
 
तब कठिन होगा
 
ख़ुद को समझ पाना
 
  
अनुवाद : विष्णु खरे
 
  
 
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13:19, 18 फ़रवरी 2009 का अवतरण

 सप्ताह की कविता

  शीर्षक:मांझी ! न बजाओ बंशी
  रचनाकार: केदारनाथ अग्रवाल

मांझी ! न बजाओ बंशी मेरा मन डोलता 

मेरा मन डोलता है जैसे जल डोलता 

जल का जहाज जैसे पल-पल डोलता 

मांझी ! न बजाओ बंशी मेरा प्रन टूटता 

मेरा प्रन टूटता है जैसे तृन टूटता 

तृन का निवास जैसे बन-बन टूटता 

मांझी ! न बजाओ बंशी मेरा तन झूमता 

मेरा तन झूमता है तेरा तन झूमता 

मेरा तन तेरा तन एक बन झूमता ।