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इक लफ़्ज़े-मोहब्बत का, अदना सा फ़साना है। <br>
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इक लफ़्ज़े-मोहब्बत का, अदना सा फ़साना है, <br>
सिमटे तो दिल-ए-आशिक़, फैले तो ज़माना है॥<br>
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सिमटे तो दिल-ए-आशिक़, फैले तो ज़माना है।<br>
 
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19:32, 18 फ़रवरी 2009 का अवतरण

 एक काव्य मोती

इक लफ़्ज़े-मोहब्बत का, अदना सा फ़साना है,
सिमटे तो दिल-ए-आशिक़, फैले तो ज़माना है।

कविता कोश में जिगर मुरादाबादी