भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"प्‍यार में पसरता बाजार / अरुणा राय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: सारे आत्मीय संबोधन कर चुके हम पर जाने क्यों चाहते हैं कि वह मेरा न...)
(कोई अंतर नहीं)

03:59, 19 फ़रवरी 2009 का अवतरण

सारे आत्मीय संबोधन कर चुके हम पर जाने क्यों चाहते हैं कि वह मेरा नाम संगमरमर पर खुदवाकर भेंट कर दे

सबसे सफ्फाक और हौला स्पर्श दे चुके हम फिर भी चाहते हैं कि उसके गले से झूलते तस्वीर हो जाए एक

जिंदगी के सबसे भारहीन पल हम गुजार चुके साथ-साथ अब क्या चाहते हैं कि पत्थर बन लटक जाएं गले से और साथ ले डूबें

छिह यह प्यार में

कैसे पसर आता है बाजार जो मौत के बाद के दिन भी तय कर जाना चाहता है ...