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13:06, 21 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण

साथ हमारा इतना ही, बस अब अलविदा ! ऐसा ही होता है, मिलने के बाद एक दिन होना पड़ता है जुदा ! और मेरे साथ ये अक्सर होता है. जो मेरे करीब होता है उसे मुझसे छीन कर हँसता है खुदा. पर तुम्हे कर सके मुझसे कोई जुदा, अज्म नही इतना जमाने में, क्योंकि तुम तो रूह की गहराइयों में बसी हो, और सदिया लगेंगी वहां से तुम्हारा अक्स मिटने में