भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बर्फीली सर्दी का दूसरा दिन / सुधा ओम ढींगरा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनूप.भार्गव (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधा ओम ढींगरा }} <poem> सूरज ने अंगड़ाई ली पहली किरण ...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
06:04, 26 फ़रवरी 2009 का अवतरण
सूरज ने अंगड़ाई ली
पहली किरण ने
अधखुली घुटी-घुटी
आँखों से
काँच बगीचे का नरीक्षण किया......
चकाचौंध से चुंधिया कर
उनींदी -उनींदी सी वह
फिर सूरज में सिमट गई
दिन भर दुबकी रही.......
एक म्यान में दो तलवारें कैसे रहतीं ?