भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"उलटी हो गई सब तदबीरें, कुछ न दवा ने काम किया / मीर तक़ी 'मीर'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो
छो
पंक्ति 11: पंक्ति 11:
  
 
नाहक़ हम मजबूरों पर ये तोहमत है मुख़्तारी की<br>
 
नाहक़ हम मजबूरों पर ये तोहमत है मुख़्तारी की<br>
चाहते हैं सो आप करे हैं, हमको अबस बदनाम किया<br><br>
+
चाहते हैं सो आप करें हैं, हमको अबस बदनाम किया<br><br>
  
 
सरज़द हम से बे-अदबी तो वहशत में भी कम ही हुई<br>
 
सरज़द हम से बे-अदबी तो वहशत में भी कम ही हुई<br>

03:08, 27 फ़रवरी 2009 का अवतरण

उलटी हो गई सब तदबीरें, कुछ न दवा ने काम किया
देखा इस बीमारी-ए-दिल ने आख़िर काम तमाम किया

अह्द-ए-जवानी रो-रो काटा, पीरी में लीं आँखें मूँद
यानि रात् बहोत थे जागे सुबह हुई आराम किया

नाहक़ हम मजबूरों पर ये तोहमत है मुख़्तारी की
चाहते हैं सो आप करें हैं, हमको अबस बदनाम किया

सरज़द हम से बे-अदबी तो वहशत में भी कम ही हुई
कोसों उस की ओर गए पर सज्दा हर हर गाम किया

ऐसे आहो-एहरम-ख़ुर्दा की वहशत खोनी मुश्किल थी
सिहर किया, इजाज़ किया, जिन लोगों ने तुझ को राम किया

याँ के सपेद-ओ-स्याह में हमको दख़ल जो है सो इतना है
रात को रो-रो सुबह किया, दिन को ज्यों-त्यों शाम किया

'मीर' के दीन-ओ-मज़हब को अब पूछते क्या हो उन ने तो
क़श्क़ा खींचा, दैर में बैठा, कब का तर्क इस्लाम किया