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"ख़त / केशव" के अवतरणों में अंतर
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शहर में खोये हुए बेटे का | शहर में खोये हुए बेटे का | ||
और जिसकी सूनी आँखों में | और जिसकी सूनी आँखों में |
22:58, 1 मार्च 2009 के समय का अवतरण
बहुत दिनों से
ख़त नहीं आया
शहर से
पिछला ख़त
कितनी-कितनी बार पढ़वाया
और रख दिया
दीये की जगह
आले में
अम्मा ने
अक्षरों की मेंड़ पर
उग आया
अम्मा का चेहरा
चेहरे में गलता हुआ
वक्त
वक्त के ढूह पर
झंडे की तरह लहराता हुआ
दिखाई देता है ख़त
सिर्फ़ ख़त
अम्मा
जिसे ख़त और झंडे में
फर्क नहीं मालूम
जिसे गाँव में आनेवाली
एकमात्र मोटर से उतरनेवाला
हर चेहरा
पैग़ाम लगता है
शहर में खोये हुए बेटे का
और जिसकी सूनी आँखों में
आकाश बनकर झलकता है
ख़त
अपनी पीड़ा को
हर रोज़
भरे हुए लोटे की तरह
सिरहाने रखकर
सोती है अम्मा
और सुबह उगते सूरज के सामने
उंडेल देती है