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00:56, 3 मार्च 2009 का अवतरण
एल्सा की आँखें
इन तेरी गहरी आँखों में मैं प्यास बुझाने आया हूँ
इनमें आए हैं निखिल सूर्य झिलमिल करने
आए हताश जन सकल तीर इनके मरने
इन तेरी गहरी आँखों में मैं अपनापन खो आया हूँ
व्यर्थ ही रोम में बह-बह कर नीलिमा पवन करता उजली
इससे तो निर्मल आँखें जिनसे अश्रु झरें
वर्षा से धुले गगन को भी ईर्ष्यालू करें
काँच की कोर नीलाभ नहीं जितनी तेरी नीली पुतली
एक ही गान में समा जाए फागुन की व्यथा कथा गहरी
अनकहा अनगिनत तारों का दुख रह जाए
विस्तीर्ण गगन का सूर्य भी न वह कह पाए
सब कुछ कहती है तेरी दो आँखों की चमक रहस्य भरी
यह देख रहा शिशु ठगा हुआ सुषमा सुन्दर आतंक भूल
वह तेरी आँखों में अपलक उत्सुक अवाक्
तू बड़ी-बड़ी आँखों से उसको रही ताक
क्या जानूँ क्यों, पर कहते हैं झर रहे आज जंगली फूल
विश्व के विकल होने की थी वह घड़ी सृष्टि की संध्या की
तट की चट्टानों पर जलते ध्वंसावशेष
सागर के पार चमकती थीं तब निर्निमेष
एल्सा की आँखें, एल्सा की आँखें, ये आँखे एल्सा की।
(मूल फ़्रांसिसी से अनुवाद : हेमन्त जोशी)
'इस कविता के अनुवाद में रघुवीर सहाय ने भी मदद दी है'