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यह क्या हो रहा है यह क्यों हो रहा है
 
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ग़फ़्लत=भूल   
 
ग़फ़्लत=भूल   
  

03:52, 4 मार्च 2009 का अवतरण

 सप्ताह की कविता

  शीर्षक: कोई हँस रहा है कोई रो रहा है
  रचनाकार: अकबर इलाहाबादी

कोई हँस रहा है कोई रो रहा है
कोई पा रहा है कोई खो रहा है

कोई ताक में है किसी को है ग़फ़्लत
कोई जागता है कोई सो रहा है

कहीँ नाउमीदी ने बिजली गिराई
कोई बीज उम्मीद के बो रहा है

इसी सोच में मैं तो रहता हूँ 'अकबर'
यह क्या हो रहा है यह क्यों हो रहा है

शब्दार्थ :

ग़फ़्लत=भूल