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"जब तुम लौट आओगे / देवांशु पाल" के अवतरणों में अंतर

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21:40, 12 मार्च 2009 के समय का अवतरण

जब तुम्हारी सारी
बन्दूक की गोलियाँ
खत्म हो जाएगी
तिब्बत की सड़कों पर
दनदनाते बरसाते हुए
जब तुम्हारे सारे गोले बारूद
खत्म हो जाएंगे
घर बाजार शहर
वीरान करते हुए
तब तुममे से कोई एक
आना मेरे साथ
मैं तुम्हें ले जाऊँगा
उन सड़कों पर
जहाँ तुमने की है हत्या
निहत्थे निरपराध असहाय
तिब्बतियों की

असख्य लाशों के बीच
तुम देख पाओगे
कोई मासूम बच्चा
जिसे तुमने रौंदा है
अपने पैरों तले
वह मरा नहीं है
सीने पर
तुम्हारे जूतों का निशान
लिए वह जिन्दा है

कोई बूढ़ा सा आदमी
जिसके सीने पर
तुमने दागी थी
बन्दूक की गोलियाँ
वह भी मरा नहीं
उसकी आवाज तुम
सुन सकते हो
कैसे गरज रहा है बह

उन असख्य लाशों में
कोई माँ होगी
जिसको तुमने किया है
निर्वस्त्र
खेला है उसकी कोख से
एक आग होगी
उसकी कोख में
तुम देख सकते हो
उस आग की लपटे
कैसे आसमान की तरफ बढ़ रहीं हैं

जब तुम लौट जाओगे
उन लाशों को लाँघते हुए
तब तुम्हें ऐसा लगेगा
तुम जीत कर भी हार गए