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"शब्द / हेमन्त जोशी" के अवतरणों में अंतर

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शब्द महज शब्द नहीं
पूरा संसार है
केंचुए सा रेंगता
वायलिन सा बजता
रंगों सा बिखरता

मुँह खुलता है जब भी
अंकुर सा प्रस्फुटित होता है
हाथ के खिलाफ़ मुट्ठी सा तनता है
युद्ध में जोरों से फटता है
युद्ध के विरुद्ध
सफ़ेद पताका सा लहराता है
 
शब्द।