भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ / अमीर मीनाई" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सतपाल 'ख़याल' |संग्रह= }} Category:ग़ज़ल <poem> उस की हसरत ...)
 
(पृष्ठ को '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सतपाल 'ख़याल' |संग्रह= }} Category:ग़ज़ल <p...' से बदल रहा है।)
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
[[Category:ग़ज़ल]]
 
[[Category:ग़ज़ल]]
 
<poem>  
 
<poem>  
उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ
 
ढूँढने उस को चला हूँ जिसे पा भी न सकूँ
 
 
मेहरबां होके बुलालो मुझे चाहो जिस वक्त
 
मैं गया वक़्त नहीं हूँ के आ भी न सकूँ
 
 
डाल कर ख़ाक मेरे खून पे क़ातिल ने कहा
 
कुछ ये मेहंदी नहीं मेरी के मिटा भी न सकूँ
 
 
ज़ब्त कमबख्त ने और आ के गला घोंटा है
 
के उसे हाल सुनाऊँ तो सुना भी न सकूँ
 
 
ज़हर मिलता ही नहीं मुझको सितमगर वरना
 
क्या कसम है तेरे मिलने की के खा भी न सकूँ
 
 
उस के पहलू में जो लेजा के सुला दूँ दिल को
 
नींद ऎसी उसे आए के जगा भी न सकूँ
 
 
नक्श-ऐ-पा देख तो लूँ लाख करूँगा सजदे
 
सर मेरा अर्श नहीं है कि झुका भी न सकूँ
 
 
बेवफा लिखते हैं वो अपनी कलम से मुझ को
 
ये वो किस्मत का लिखा है जो मिटा भी न सकूँ
 
 
इस तरह सोये हैं सर रख के मेरे जानों पर
 
अपनी सोई हुई किस्मत को जगा भी न सकूँ
 
 
[ज़ब्त=सहनशीलता)[ हसरत=इच्छा)[पहलू=गोद]
 
 
 
 
 
 
</poem>
 
</poem>

15:35, 24 मार्च 2009 का अवतरण