भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"लफ़्ज़ अगर कुछ ज़हरीले हो जाते हैं / गोविन्द गुलशन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: लफ़्ज़ अगर कुछ ज़हरीले हो जाते हैं होंठ न जाने क्यूँ नीले हो जाते ...)
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
लफ़्ज़ अगर कुछ ज़हरीले हो जाते हैं
+
लफ़्ज़ अगर कुछ ज़हरीले हो जाते हैं,
होंठ न जाने क्यूँ नीले हो जाते हैं
+
होंठ न जाने क्यूँ नीले हो जाते हैं,
  
उनके बयाँ जब बर्छीले हो जाते हैं
+
उनके बयाँ जब बर्छीले हो जाते हैं,
बस्ती में ख़ंजर गीले हो जाते हैं
+
बस्ती में ख़ंजर गीले हो जाते हैं,
  
चलती हैं जब सर्द हवाएँ यादों की
+
चलती हैं जब सर्द हवाएँ यादों की,
ज़ख़्म हमारे दर्दीले हो जाते हैं
+
ज़ख़्म हमारे दर्दीले हो जाते हैं,
  
जेब में जब गर्मी का मोसम आता है
+
जेब में जब गर्मी का मोसम आता है,
हाथ हमारे ख़र्चीले हो जाते हैं
+
हाथ हमारे ख़र्चीले हो जाते हैं,
  
आँसू की दरकार अगर हो जाए तो
+
आँसू की दरकार अगर हो जाए तो,
याद के बादल रेतीले हो जाते हैं
+
याद के बादल रेतीले हो जाते हैं,
  
रंग-बिरंगे सपने दिल में ही रखना
+
रंग-बिरंगे सपने दिल में ही रखना,
आँखों में सपने गीले हो जाते हैं
+
आँखों में सपने गीले हो जाते हैं,
  
फ़स्ले-ख़िज़ाँ जब आती है तो ऐ गुलशन
+
फ़स्ले-ख़िज़ाँ जब आती है तो ऐ गुलशन,
फूल जुदा, पत्ते पीले हो जाते हैं
+
फूल जुदा, पत्ते पीले हो जाते हैं,

10:30, 30 मार्च 2009 का अवतरण

लफ़्ज़ अगर कुछ ज़हरीले हो जाते हैं, होंठ न जाने क्यूँ नीले हो जाते हैं,

उनके बयाँ जब बर्छीले हो जाते हैं, बस्ती में ख़ंजर गीले हो जाते हैं,

चलती हैं जब सर्द हवाएँ यादों की, ज़ख़्म हमारे दर्दीले हो जाते हैं,

जेब में जब गर्मी का मोसम आता है, हाथ हमारे ख़र्चीले हो जाते हैं,

आँसू की दरकार अगर हो जाए तो, याद के बादल रेतीले हो जाते हैं,

रंग-बिरंगे सपने दिल में ही रखना, आँखों में सपने गीले हो जाते हैं,

फ़स्ले-ख़िज़ाँ जब आती है तो ऐ गुलशन, फूल जुदा, पत्ते पीले हो जाते हैं,