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"झुक नहीं सकते / अटल बिहारी वाजपेयी" के अवतरणों में अंतर

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सत्य का संघर्ष सत्ता से<br>
 
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किरण अंतिम अस्त होती है<br><br>
 
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23:22, 18 मई 2007 का अवतरण

लेखक: अटल बिहारी वाजपेयी

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टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते

सत्य का संघर्ष सत्ता से
न्याय लड़ता निरंकुशता से
अंधेरे ने दी चुनौती है
किरण अंतिम अस्त होती है

दीप निष्ठा का लिये निष्कम्प
वज्र टूटे या उठे भूकम्प
यह बराबर का नहीं है युद्ध
हम निहत्थे, शत्रु है सन्नद्ध
हर तरह के शस्त्र से है सज्ज
और पशुबल हो उठा निर्लज्ज

किन्तु फिर भी जूझने का प्रण
अंगद ने बढ़ाया चरण
प्राण-पण से करेंगे प्रतिकार
समर्पण की माँग अस्वीकार

दाँव पर सब कुछ लगा है, रुक नहीं सकते
टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते