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क्या समय के पहले समय नहीं था?
पानी से पहले नहीं था पानी?
खड़ा हठीला टीला ये जो, क्या इससे पहले रेत नहीं था?
और मृदा संग हवा कुनमुनी,
धूप, पात, वारि ने मिल कर,
स्वर मिश्री सा साधा उससे पहले सुर समवेत नहीं था?
तैरे आकाशी गंगा सूरज,
धरा ज्योति में गोते खाये,
इससे पहले सभी श्याम था, कोई आंचल श्वेत नहीं था ?
नाम नहीं था जब चीजों का,
प्रीत, पीर क्या एक नहीं थे?
ऐसा क्यों लगता है मुझको, जैसे इनमें भेद नहीं था ?
तुमने जो इतने भावों को,
ले छिड़काया मन में मेरे,
पहले भी ये ज़मीं रही थी, पर चिर नूतन खेत नहीं था !
(गेबरियल गार्सिया मार्क्वेज़ को समर्पित)