"गाय / धर्मेन्द्र पारे" के अवतरणों में अंतर
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− | + | मेरा बचपन बीता था उस | |
+ | गा-गा, लो-लो के साथ | ||
+ | जब जंगल जाती थी यह | ||
+ | इसकी बछिया के साथ मैं भी रँभाता था | ||
+ | उसकी आँखों का भय और उदासी | ||
+ | मेरी आँखों में उतर आता था | ||
− | + | इसका बच्चा मरा था जब | |
− | + | तीन दिनों तक कुछ नहीं खाया था इसने | |
− | + | और माँ ने मुझे बताया था | |
− | और | + | गाय को नदी के पानी में अपने मृत |
− | बच्चे | + | बच्चे की परछाई दिखती है |
+ | उन तीन दिनों में मैं भी | ||
+ | टुकुर-टुकुर कई बार | ||
+ | जाकर इसकी आँखें देखता | ||
+ | रहा था | ||
− | + | कभी नदी पर जाकर परछाईं खोजता था | |
− | + | और सचमुच गाय की आँखों में | |
− | + | मुझे बच्चा दीखता था | |
+ | और मैं सहम जाता था | ||
− | + | इस गाय से मेरा रिश्ता | |
− | + | किसी आन्दोलन के तहत नहीं था | |
− | + | पर माफ़ कीजिए | |
− | + | जैसे अपनों से करता है कोई प्रेम | |
− | + | वैसा प्रेम मेरा था | |
+ | यह क्या छुपाने की बात है? | ||
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10:24, 2 अप्रैल 2009 के समय का अवतरण
यह गाय सिर्फ़
दूध नहीं थी हमारे लिए
उपला कंडा भी नहीं थी
धर्म पूजा भर नहीं थी
यह गाय
चमड़ा तो कभी नहीं थी
मेरा बचपन बीता था उस
गा-गा, लो-लो के साथ
जब जंगल जाती थी यह
इसकी बछिया के साथ मैं भी रँभाता था
उसकी आँखों का भय और उदासी
मेरी आँखों में उतर आता था
इसका बच्चा मरा था जब
तीन दिनों तक कुछ नहीं खाया था इसने
और माँ ने मुझे बताया था
गाय को नदी के पानी में अपने मृत
बच्चे की परछाई दिखती है
उन तीन दिनों में मैं भी
टुकुर-टुकुर कई बार
जाकर इसकी आँखें देखता
रहा था
कभी नदी पर जाकर परछाईं खोजता था
और सचमुच गाय की आँखों में
मुझे बच्चा दीखता था
और मैं सहम जाता था
इस गाय से मेरा रिश्ता
किसी आन्दोलन के तहत नहीं था
पर माफ़ कीजिए
जैसे अपनों से करता है कोई प्रेम
वैसा प्रेम मेरा था
यह क्या छुपाने की बात है?