"हज़ारों रंग बदले है निगाहे-यार चुटकी में / मनु 'बे-तख़ल्लुस'" के अवतरणों में अंतर
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ये क्या जादू किया है आपने सरकार चुटकी में | ये क्या जादू किया है आपने सरकार चुटकी में | ||
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ज़रा गर्दन झुकाकर कीजिये दीदार चुटकी में | ज़रा गर्दन झुकाकर कीजिये दीदार चुटकी में | ||
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वो आकर दे गया मुझको नया आकार चुटकी में | वो आकर दे गया मुझको नया आकार चुटकी में | ||
− | जो मेरे | + | जो मेरे ज़ेह्न में रहता था गुमगश्ता किताबों-सा |
− | मुझे पढ़कर हुआ वो सुबह का | + | मुझे पढ़कर हुआ वो सुबह का अख़बार चुटकी में |
कभी बरसों बरस दो काफ़िये तक जुड़ नहीं पाते | कभी बरसों बरस दो काफ़िये तक जुड़ नहीं पाते | ||
कभी होने को होते हैं कई अश'आर चुटकी में | कभी होने को होते हैं कई अश'आर चुटकी में |
08:24, 5 अप्रैल 2009 के समय का अवतरण
कभी इकरार चुटकी में, कभी इनकार चुटकी में
हज़ारों रंग बदले है निगाहे-यार चुटकी में
मैं रूठा सौ दफ़ा लेकिन मना इक बार चुटकी में
ये क्या जादू किया है आपने सरकार चुटकी में
बड़े फ़रमा गए, यूँ देखिये तस्वीरे-जानाँ को,
ज़रा गर्दन झुकाकर कीजिये दीदार चुटकी में
कहो फिर सब्र का दामन कोई थामे भला कैसे,
अगर ख़्वाबों में हो जाए विसाले-यार चुटकी में
ग़ज़ल का रंग फीका हो चला है धुन बदल अपनी
तराने छेड़ ख़ुशबू के, भुलाकर ख़ार चुटकी में
न होना हो तो ये ता-उम्र भी होता नहीं यारो
मगर होना हो तो होता है ऐसे प्यार चुटकी में
वजूद अपना बहुत बिखरा हुआ था अब तलक लेकिन
वो आकर दे गया मुझको नया आकार चुटकी में
जो मेरे ज़ेह्न में रहता था गुमगश्ता किताबों-सा
मुझे पढ़कर हुआ वो सुबह का अख़बार चुटकी में
कभी बरसों बरस दो काफ़िये तक जुड़ नहीं पाते
कभी होने को होते हैं कई अश'आर चुटकी में