भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"श्री राम चंद्र कृपालु भजमन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 35: पंक्ति 35:
 
      
 
      
 
जानि गौरि अनुकूल, सिय हिय हरषु  न जाय कहि |
 
जानि गौरि अनुकूल, सिय हिय हरषु  न जाय कहि |
 +
 
मंजुल  मंगल मूल,  बाम  अंग  फरकन  लगे ||
 
मंजुल  मंगल मूल,  बाम  अंग  फरकन  लगे ||

22:01, 5 अप्रैल 2009 का अवतरण

श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भाव भय दारुणम् |

नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम ||


कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम |

पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमि जनक सुतावरम ||


भजु दीन बन्धु दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम |

रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ नन्दनम ||


सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारू अंग विभूषणं |

आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर - दूषणं ||


इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम |

मम ह्रदय कुंज निवास कुरु कामादि खल दल गंजनम ||


मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरों |

करुना निधान सुजान शील सनेह जानत रावरो ||


एही भांति गौरि असीस सुनि सिय सहित हिय हरषी अली |

तुलसी भवानी पूजि पुनि पुनि मुदित मन मन्दिर चली ||


जानि गौरि अनुकूल, सिय हिय हरषु न जाय कहि |

मंजुल मंगल मूल, बाम अंग फरकन लगे ||