भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"निरावरण वह / पंकज चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पंकज चतुर्वेदी}} <poem> (फ्रांसीसी कलाकार गुस्ताव क...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
23:39, 10 अप्रैल 2009 के समय का अवतरण
(फ्रांसीसी कलाकार गुस्ताव कूर्बे की कृति " चित्रकार का स्टूडियो" को देखकर)
देह को निरावृत करने में
वह झिझकती है
क्या इसलिए कि उस पर
प्यार के निशान हैं
नहीं
बिजलियों की तड़प से
पुष्ट थे उभार
आकाश की लालिमा छुपाए हुए
क्षितिज था रेशम की सलवटों-सा
पांवों से लिपटा हुआ
जब उसे निरावरण देखा
प्रतीक्षा के ताप से उष्ण
लज्जा के रोमांच से भरी
अपनी निष्कलुष आभा में दमकता
स्वर्ण थी वह
इन्द्र के शाप से शापित नहीं
न मनुष्य-सान्निध्य से म्लान
वह नदी का जल
हमेशा ताज़ा
समस्त संसर्गों को आत्मसात किए हुए
छलछल पावनता