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"किशोर / व्योमेश शुक्ल" के अवतरणों में अंतर

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कहने को यही था कि किशोर अब गुब्बारे में चला गया है लेकिन  
 
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वहाँ रहना मुश्किल है दुनिया से बचते हुए  
 
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खाने नहाने सोने प्यार करने को  
 
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यदि कोई बनाये तो किशोर का चित्र सिर्फ काले रंग से बनेगा
 
यदि कोई बनाये तो किशोर का चित्र सिर्फ काले रंग से बनेगा

01:43, 11 अप्रैल 2009 का अवतरण

कहने को यही था कि किशोर अब गुब्बारे में चला गया है लेकिन

वहाँ रहना मुश्किल है दुनिया से बचते हुए

खाने नहाने सोने प्यार करने को

दुनिया में लौटना होता है किशोर को भी


यदि कोई बनाये तो किशोर का चित्र सिर्फ काले रंग से बनेगा वह बाक़ी रंग गुब्बारे में अब रख आता है वहीं करेगा आइंदा मेकप अपने हैमलेट होरी घासीराम का यहाँ बड़ी ग़रीबी है कम्पनी के पर्दे मैले और घायल हैं हनुमान दिन में कोचिंग सेंटर रात में भाँग की दुकान चलाता है होरी फिर से कर्ज़ में है और इस बार उसे आत्महत्या कर लेनी चाहिए कुछ अप्रासंगिक पुराने असफल चेहरे बिना पूछे बताते हैं कि होरी का पार्ट एक अर्सा पहले, किशोर ही अदा करता था या कोई और करता था इस बीच एक दिन वह मुझसे कुछ कह रहा था या पैसे माँग रहा था असफल लोगों को याद है या याद नहीं है मुझसे किशोर ने कुछ कहा था या नहीं कहा था विपत्ति है थियेटर घर फूँककर तमाशा देखना पड़ता है

दर्शक आते हैं या नहीं आते नहीं आते हैं या नहीं आते

भारतेंदु के मंच पर आग लग गई है लोग बदहवास होकर अंग्रेजी में भाग रहे हैं किशोर देखता हुआ यह सब अपने मुँह के चित्र में खैनी जमाता है ग़ायब हो जाता है शाहख़र्च रहा शुरू से अब साँस ख़र्च करता है गुब्बारे फुलाता है सुरीला था किशोर राग भर देता है गुब्बारों के खेल में बच्चे यमन अहीर भैरव तिलक कामोद उड़ाते हैं अपने हिस्से के खेल में बहुत ज्यादा समय में बहुत थोड़ा किशोर है साँस लेने की आदत में बचा हुआ गाता