"हमको ऐसे मिली ज़िंदगी ! / शार्दुला नोगजा" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
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− | इक मुड़ी जीन्स में, | + | इक मुड़ी जीन्स में, फँस गई सीप-सी |
− | आँधियों से भरे, एक कृत्रिम द्वीप सी | + | आँधियों से भरे, एक कृत्रिम द्वीप-सी |
− | + | नाखूनों में घुसी, कुछ हठी रेत-सी | |
− | पेड़ बौने | + | पेड़ बौने लिए, बोन्साई खेत-सी |
− | टूटी इक गिटार सी, क्लिष्ट व्यवहार सी | + | टूटी इक गिटार-सी, क्लिष्ट व्यवहार-सी |
− | नाम भी ना रहे याद, भूले प्यार सी | + | नाम भी ना रहे याद, भूले प्यार-सी |
− | फोटो बिन फ्रेम की, बस कुशल-क्षेम सी | + | फोटो बिन फ्रेम की, बस कुशल-क्षेम-सी |
− | बारिशों से स्थगित एक क्रिकेट गेम सी | + | बारिशों से स्थगित एक क्रिकेट गेम-सी |
हाथ से ढुल गई मय ना प्याले गिरी | हाथ से ढुल गई मय ना प्याले गिरी | ||
शाम जो रात लौटी नहीं सिरफिरी | शाम जो रात लौटी नहीं सिरफिरी | ||
− | देने में जो सरल, सस्ते इक ज्ञान सी | + | देने में जो सरल, सस्ते इक ज्ञान-सी |
− | भाव से हो रहित, हाय! उस गान सी | + | भाव से हो रहित, हाय! उस गान-सी |
खोल खिड़की किरण जो ना घर आ सकी | खोल खिड़की किरण जो ना घर आ सकी | ||
धुन ज़हन में रही ना जुबाँ पा सकी | धुन ज़हन में रही ना जुबाँ पा सकी | ||
− | आदतों की बनी इक गहन रेख सी | + | आदतों की बनी इक गहन रेख-सी |
− | बस जो होती | + | बस जो होती बहू में ही, मीन-मेख-सी |
− | बी.एम.आई इंडैक्स सी, बिन कमाई टैक्स सी | + | बी.एम.आई इंडैक्स सी, बिन कमाई टैक्स-सी |
− | जो कि पढ़ ना सके, उड़ गये फैक्स सी | + | जो कि पढ़ ना सके, उड़ गये फैक्स-सी |
हमको ऐसे मिली कि हँसी आ गई | हमको ऐसे मिली कि हँसी आ गई | ||
पंक्ति 37: | पंक्ति 37: | ||
ज़िंदगी प्यार के झूठे ई-मेल सी | ज़िंदगी प्यार के झूठे ई-मेल सी | ||
पुल पे आई विलम्बित थकी रेल सी ! | पुल पे आई विलम्बित थकी रेल सी ! | ||
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19:29, 11 अप्रैल 2009 का अवतरण
इक मुड़ी जीन्स में, फँस गई सीप-सी
आँधियों से भरे, एक कृत्रिम द्वीप-सी
नाखूनों में घुसी, कुछ हठी रेत-सी
पेड़ बौने लिए, बोन्साई खेत-सी
टूटी इक गिटार-सी, क्लिष्ट व्यवहार-सी
नाम भी ना रहे याद, भूले प्यार-सी
फोटो बिन फ्रेम की, बस कुशल-क्षेम-सी
बारिशों से स्थगित एक क्रिकेट गेम-सी
हाथ से ढुल गई मय ना प्याले गिरी
शाम जो रात लौटी नहीं सिरफिरी
देने में जो सरल, सस्ते इक ज्ञान-सी
भाव से हो रहित, हाय! उस गान-सी
खोल खिड़की किरण जो ना घर आ सकी
धुन ज़हन में रही ना जुबाँ पा सकी
आदतों की बनी इक गहन रेख-सी
बस जो होती बहू में ही, मीन-मेख-सी
बी.एम.आई इंडैक्स सी, बिन कमाई टैक्स-सी
जो कि पढ़ ना सके, उड़ गये फैक्स-सी
हमको ऐसे मिली कि हँसी आ गई
फिर गले से लगाया तो शर्मा गई
ज़िंदगी प्यार के झूठे ई-मेल सी
पुल पे आई विलम्बित थकी रेल सी !