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− | + | और सराबोर हो रही हूँ तुम्हारे प्रेम में। | |
− | + | चाहत कौंधी उसकी आँखों में | |
− | + | छलक गई शराब उसके प्याले में | |
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+ | '''अहमद करीमी हक्काक के अंग्रेजी अनुवाद से हिन्दी में अनुवाद यादवेन्द्र''' | ||
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03:26, 14 अप्रैल 2009 का अवतरण
मैंने पाप किया पर पाप में था निस्सीम आनंद
समा गई गर्म और उत्तप्त बाँहों में
मुझसे पाप हो गया
पुलकित, बलशाली और आक्रामक बाँहों में।
एकांत के उस अँधेरे और नीरव कोने में
मैंने उसकी रहस्यमयी आँखों में देखा
सीने में मेरा दिल ऐसे आवेग में धड़का
उसकी आँखों की सुलगती चाहत ने
मुझे अपनी गिरफ़्त में ले लिया।
एकांत के उस अँधेरे और नीरव कोने में
जब मैं उससे सटकर बैठी
अंदर का सब कुछ बिखर कर बह चला
उसके होंठ मेरे होंठों में भरते रहे लालसा
और मैं अपने मन के
तमाम दुखों को बिसराती चली गई।
मैंने उसके कान में प्यार से कहा –
मेरी रूह के साथी, मैं तुम्हें चाहती हूँ
मैं चाहती हूँ तुम्हारा जीवनदायी आलिंगन
मैं तुम्हें ही चाहती हूँ मेरे प्रिय
और सराबोर हो रही हूँ तुम्हारे प्रेम में।
चाहत कौंधी उसकी आँखों में
छलक गई शराब उसके प्याले में
और मेरा बदन फिसलने लगा उसके ऊपर
मखमली गद्दे की भरपूर कोमलता लिए।
मैंने पाप किया पर पाप में था निस्सीम आनंद
उस देह के बारूद में लेटी हूँ
जो पड़ा है अब निस्तेज और शिथिल
मुझे यह पता ही नहीं चला हे ईश्वर !
कि मुझसे क्या हो गया
एकांत के उस अँधेरे और नीरव कोने में।
अहमद करीमी हक्काक के अंग्रेजी अनुवाद से हिन्दी में अनुवाद यादवेन्द्र