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"पाप / फ़रोग फ़रोखज़ाद" के अवतरणों में अंतर

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अठखेलियाँ करती हवा में मैंने अपने कपड़े उतारे
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मैंने पाप किया पर पाप में था निस्सीम आनंद
कि नहा सकूँ कलकल बहती नदी में
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समा गई गर्म और उत्तप्त बाँहों में
पर स्तब्ध रात ने बाँध लिया मुझे अपने मोहपाश में
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मुझसे पाप हो गया
और ठगी-सी मैं
+
पुलकित, बलशाली और आक्रामक बाँहों में।
अपने दिल का दर्द सुनाने लगी पानी को।
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ठंडा था पानी और थिरकती लहरों के साथ बह रहा था
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एकांत के उस अँधेरे और नीरव कोने में
हल्के से फुसफुसाया और लिपट गया मेरे बदन से
+
मैंने उसकी रहस्यमयी आँखों में देखा
और जागने-कुलबुलाने लगीं मेरी चाहतें
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सीने में मेरा दिल ऐसे आवेग में धड़का
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उसकी आँखों की सुलगती चाहत ने
 +
मुझे अपनी गिरफ़्त में ले लिया।
  
शीशे जैसे चिकने हाथों से
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एकांत के उस अँधेरे और नीरव कोने में
धीरे-धीरे वह निगलने लगा अपने अंदर
+
जब मैं उससे सटकर बैठी
मेरी देह और रूह दोनों को ही।
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अंदर का सब कुछ बिखर कर बह चला
 +
उसके होंठ मेरे होंठों में भरते रहे लालसा
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और मैं अपने मन के
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तमाम दुखों को बिसराती चली गई।
  
तभी अचानक हवा का एक बगूला उठा
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मैंने उसके कान में प्यार से कहा –
और मेरे केशों में झोंक गया धूल-मिट्टी
+
मेरी रूह के साथी, मैं तुम्हें चाहती हूँ
उसकी साँसों में सराबोर थी
+
मैं चाहती हूँ तुम्हारा जीवनदायी आलिंगन
जंगली फूलों की पगला देने वाली भीनी ख़ुशबू
+
मैं तुम्हें ही चाहती हूँ मेरे प्रिय
यह धीरे-धीरे भरती गई मेरे मुँह के अंदर।
+
और सराबोर हो रही हूँ तुम्हारे प्रेम में।
  
आनंद में उन्मत्त हो उठी मैंने
+
चाहत कौंधी उसकी आँखों में
मूँद लीं अपनी आँखें
+
छलक गई शराब उसके प्याले में
और रगड़ने लगी बदन अपना
+
और मेरा बदन फिसलने लगा उसके ऊपर
कोमल नई उगी जंगली घास पर
+
मखमली गद्दे की भरपूर कोमलता लिए।
जैसी हरकतें करती है प्रेमिका
+
अपने प्रेमी से सटकर
+
और बहते हुए पानी में
+
धीरे-धीरे मैंने खो दिया अपना आपा भी
+
अधीर, प्यास से उत्तप्त और चुंबनों से उभ-चुभ
+
पानी के काँपते होंठों ने
+
गिरफ़्त में ले लीं मेरी टांगें
+
और हम समाते चले गए एक दूसरे में…
+
देखते – देखते
+
तृप्ति और नशे से मदमत्त
+
मेरी देह और नदी की रूह
+
दोनों ही जा पहुँचे – गुनाह के कटघरे में।
+
  
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मैंने पाप किया पर पाप में था निस्सीम आनंद
 +
उस देह के बारूद में लेटी हूँ
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जो पड़ा है अब निस्तेज और शिथिल
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मुझे यह पता ही नहीं चला हे ईश्वर !
 +
कि मुझसे क्या हो गया
 +
एकांत के उस अँधेरे और नीरव कोने में।
  
'''मीतरा सोफिया के अंग्रेजी अनुवाद से हिन्दी में अनुवाद यादवेन्द्र'''
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'''अहमद करीमी हक्काक के अंग्रेजी अनुवाद से हिन्दी में अनुवाद यादवेन्द्र'''
 
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03:26, 14 अप्रैल 2009 का अवतरण

मैंने पाप किया पर पाप में था निस्सीम आनंद
समा गई गर्म और उत्तप्त बाँहों में
मुझसे पाप हो गया
पुलकित, बलशाली और आक्रामक बाँहों में।

एकांत के उस अँधेरे और नीरव कोने में
मैंने उसकी रहस्यमयी आँखों में देखा
सीने में मेरा दिल ऐसे आवेग में धड़का
उसकी आँखों की सुलगती चाहत ने
मुझे अपनी गिरफ़्त में ले लिया।

एकांत के उस अँधेरे और नीरव कोने में
जब मैं उससे सटकर बैठी
अंदर का सब कुछ बिखर कर बह चला
उसके होंठ मेरे होंठों में भरते रहे लालसा
और मैं अपने मन के
तमाम दुखों को बिसराती चली गई।

मैंने उसके कान में प्यार से कहा –
मेरी रूह के साथी, मैं तुम्हें चाहती हूँ
मैं चाहती हूँ तुम्हारा जीवनदायी आलिंगन
मैं तुम्हें ही चाहती हूँ मेरे प्रिय
और सराबोर हो रही हूँ तुम्हारे प्रेम में।

चाहत कौंधी उसकी आँखों में
छलक गई शराब उसके प्याले में
और मेरा बदन फिसलने लगा उसके ऊपर
मखमली गद्दे की भरपूर कोमलता लिए।

मैंने पाप किया पर पाप में था निस्सीम आनंद
उस देह के बारूद में लेटी हूँ
जो पड़ा है अब निस्तेज और शिथिल
मुझे यह पता ही नहीं चला हे ईश्वर !
कि मुझसे क्या हो गया
एकांत के उस अँधेरे और नीरव कोने में।


अहमद करीमी हक्काक के अंग्रेजी अनुवाद से हिन्दी में अनुवाद यादवेन्द्र