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"अंजलि के फूल गिरे जाते हैं / माखनलाल चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर
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अंजलि के फूल गिरे जाते हैं | अंजलि के फूल गिरे जाते हैं | ||
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आये आवेश फिरे जाते हैं। | आये आवेश फिरे जाते हैं। | ||
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चरण-ध्वनि पास-दूर कहीं नहीं | चरण-ध्वनि पास-दूर कहीं नहीं | ||
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साधें आराधनीय रही नहीं | साधें आराधनीय रही नहीं | ||
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उठने,उठ पड़ने की बात रही | उठने,उठ पड़ने की बात रही | ||
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साँसों से गीत बे-अनुपात रही | साँसों से गीत बे-अनुपात रही | ||
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बागों में पंखनियाँ झूल रहीं | बागों में पंखनियाँ झूल रहीं | ||
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कुछ अपना, कुछ सपना भूल रहीं | कुछ अपना, कुछ सपना भूल रहीं | ||
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फूल-फूल धूल लिये मुँह बाँधे | फूल-फूल धूल लिये मुँह बाँधे | ||
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किसको अनुहार रही चुप साधे | किसको अनुहार रही चुप साधे | ||
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दौड़ के विहार उठो अमित रंग | दौड़ के विहार उठो अमित रंग | ||
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तू ही `श्रीरंग' कि मत कर विलम्ब | तू ही `श्रीरंग' कि मत कर विलम्ब | ||
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कितना रोका कि मौन बोल उठीं | कितना रोका कि मौन बोल उठीं | ||
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आहों का रथ माना भारी है | आहों का रथ माना भारी है | ||
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चाहों में क्षुद्रता कुँआरी है | चाहों में क्षुद्रता कुँआरी है | ||
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आओ तुम अभिनव उल्लास भरे | आओ तुम अभिनव उल्लास भरे | ||
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नेह भरे, ज्वार भरे, प्यास भरे | नेह भरे, ज्वार भरे, प्यास भरे | ||
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अंजलि के फूल गिरे जाते हैं | अंजलि के फूल गिरे जाते हैं | ||
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आये आवेश फिरे जाते हैं।। | आये आवेश फिरे जाते हैं।। | ||
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13:06, 14 अप्रैल 2009 का अवतरण
अंजलि के फूल गिरे जाते हैं
आये आवेश फिरे जाते हैं।
चरण-ध्वनि पास-दूर कहीं नहीं
साधें आराधनीय रही नहीं
उठने,उठ पड़ने की बात रही
साँसों से गीत बे-अनुपात रही
बागों में पंखनियाँ झूल रहीं
कुछ अपना, कुछ सपना भूल रहीं
फूल-फूल धूल लिये मुँह बाँधे
किसको अनुहार रही चुप साधे
दौड़ के विहार उठो अमित रंग
तू ही `श्रीरंग' कि मत कर विलम्ब
बँधी-सी पलकें मुँह खोल उठीं
कितना रोका कि मौन बोल उठीं
आहों का रथ माना भारी है
चाहों में क्षुद्रता कुँआरी है
आओ तुम अभिनव उल्लास भरे
नेह भरे, ज्वार भरे, प्यास भरे
अंजलि के फूल गिरे जाते हैं
आये आवेश फिरे जाते हैं।।