"उस प्रभात, तू बात न माने / माखनलाल चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर
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उस प्रभात, तू बात न माने, | उस प्रभात, तू बात न माने, | ||
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तोड़ कुन्द कलियाँ ले आई, | तोड़ कुन्द कलियाँ ले आई, | ||
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फिर उनकी पंखड़ियाँ तोड़ीं | फिर उनकी पंखड़ियाँ तोड़ीं | ||
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पर न वहाँ तेरी छवि पाई, | पर न वहाँ तेरी छवि पाई, | ||
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कलियों का यम मुझ में धाया | कलियों का यम मुझ में धाया | ||
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तब साजन क्यों दौड़ न आया? | तब साजन क्यों दौड़ न आया? | ||
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फिर पंखड़ियाँ ऊग उठीं वे | फिर पंखड़ियाँ ऊग उठीं वे | ||
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फूल उठी, मेरे वनमाली! | फूल उठी, मेरे वनमाली! | ||
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कैसे, कितने हार बनाती | कैसे, कितने हार बनाती | ||
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फूल उठी जब डाली-डाली! | फूल उठी जब डाली-डाली! | ||
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सूत्र, सहारा, ढूँढं न पाया | सूत्र, सहारा, ढूँढं न पाया | ||
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तू, साजन, क्यों दौड़ न आया? | तू, साजन, क्यों दौड़ न आया? | ||
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दो-दो हाथ तुम्हारे मेरे | दो-दो हाथ तुम्हारे मेरे | ||
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प्रथम `हार' के हार बनाकर, | प्रथम `हार' के हार बनाकर, | ||
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मेरी `हारों' की वन माला | मेरी `हारों' की वन माला | ||
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फूल उठी तुझको पहिनाकर, | फूल उठी तुझको पहिनाकर, | ||
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पर तू था सपनों पर छाया | पर तू था सपनों पर छाया | ||
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तू साजन, क्यों दौड़ न आया? | तू साजन, क्यों दौड़ न आया? | ||
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दौड़ी मैं, तू भाग न जाये, | दौड़ी मैं, तू भाग न जाये, | ||
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डालूँ गलबहियों की माला | डालूँ गलबहियों की माला | ||
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फूल उठी साँसों की धुन पर | फूल उठी साँसों की धुन पर | ||
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मेरी `हार', कि तेरी `माला'! | मेरी `हार', कि तेरी `माला'! | ||
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तू छुप गया, किसी ने गाया- | तू छुप गया, किसी ने गाया- | ||
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रे साजन, क्यों दौड़ न आया! | रे साजन, क्यों दौड़ न आया! | ||
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जी की माल, सुगंध नेह की | जी की माल, सुगंध नेह की | ||
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सूख गई, उड़ गई, कि तब तू | सूख गई, उड़ गई, कि तब तू | ||
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दूलह बना; दौड़कर बोला | दूलह बना; दौड़कर बोला | ||
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पहिना दो सूखी वनमाला। | पहिना दो सूखी वनमाला। | ||
मैं तो होश समेट न पाई | मैं तो होश समेट न पाई | ||
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तेरी स्मृति में प्राण छुपाया, | तेरी स्मृति में प्राण छुपाया, | ||
युग बोला, तू अमर तस्र्ण है | युग बोला, तू अमर तस्र्ण है | ||
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मति ने स्मृति आँचल सरकाया, | मति ने स्मृति आँचल सरकाया, | ||
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जी में खोजा, तुझे न | जी में खोजा, तुझे न | ||
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तू साजन, क्यों दौड़ न आया? | तू साजन, क्यों दौड़ न आया? | ||
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13:14, 14 अप्रैल 2009 का अवतरण
उस प्रभात, तू बात न माने,
तोड़ कुन्द कलियाँ ले आई,
फिर उनकी पंखड़ियाँ तोड़ीं
पर न वहाँ तेरी छवि पाई,
कलियों का यम मुझ में धाया
तब साजन क्यों दौड़ न आया?
फिर पंखड़ियाँ ऊग उठीं वे
फूल उठी, मेरे वनमाली!
कैसे, कितने हार बनाती
फूल उठी जब डाली-डाली!
सूत्र, सहारा, ढूँढं न पाया
तू, साजन, क्यों दौड़ न आया?
दो-दो हाथ तुम्हारे मेरे
प्रथम `हार' के हार बनाकर,
मेरी `हारों' की वन माला
फूल उठी तुझको पहिनाकर,
पर तू था सपनों पर छाया
तू साजन, क्यों दौड़ न आया?
दौड़ी मैं, तू भाग न जाये,
डालूँ गलबहियों की माला
फूल उठी साँसों की धुन पर
मेरी `हार', कि तेरी `माला'!
तू छुप गया, किसी ने गाया-
रे साजन, क्यों दौड़ न आया!
जी की माल, सुगंध नेह की
सूख गई, उड़ गई, कि तब तू
दूलह बना; दौड़कर बोला
पहिना दो सूखी वनमाला।
मैं तो होश समेट न पाई
तेरी स्मृति में प्राण छुपाया,
युग बोला, तू अमर तस्र्ण है
मति ने स्मृति आँचल सरकाया,
जी में खोजा, तुझे न
तू साजन, क्यों दौड़ न आया?