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"यौवन का पागलपन / माखनलाल चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर

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हम कहते हैं बुरा न मानो,
 
हम कहते हैं बुरा न मानो,
 
 
यौवन मधुर सुनहली छाया।
 
यौवन मधुर सुनहली छाया।
 
 
  
 
सपना है, जादू है, छल है ऐसा
 
सपना है, जादू है, छल है ऐसा
 
 
पानी पर बनती-मिटती रेखा-सा,
 
पानी पर बनती-मिटती रेखा-सा,
 
 
मिट-मिटकर दुनिया देखे रोज़ तमाशा।
 
मिट-मिटकर दुनिया देखे रोज़ तमाशा।
 
 
यह गुदगुदी, यही बीमारी,
 
यह गुदगुदी, यही बीमारी,
 
 
मन हुलसावे, छीजे काया।
 
मन हुलसावे, छीजे काया।
 
  
 
हम कहते हैं बुरा न मानो,  
 
हम कहते हैं बुरा न मानो,  
 
 
यौवन मधुर सुनहली छाया।
 
यौवन मधुर सुनहली छाया।
 
 
  
 
वह आया आँखों में, दिल में, छुपकर,
 
वह आया आँखों में, दिल में, छुपकर,
 
 
वह आया सपने में, मन में, उठकर,
 
वह आया सपने में, मन में, उठकर,
 
 
वह आया साँसों में से स्र्क-स्र्ककर।
 
वह आया साँसों में से स्र्क-स्र्ककर।
 
 
  
 
हो न पुरानी, नई उठे फिर
 
हो न पुरानी, नई उठे फिर
 
 
कैसी कठिन मोहिनी माया!
 
कैसी कठिन मोहिनी माया!
 
  
 
हम कहते हैं बुरा न मानो,  
 
हम कहते हैं बुरा न मानो,  
 
 
यौवन मधुर सुनहली छाया।
 
यौवन मधुर सुनहली छाया।
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19:45, 15 अप्रैल 2009 का अवतरण

हम कहते हैं बुरा न मानो,
यौवन मधुर सुनहली छाया।

सपना है, जादू है, छल है ऐसा
पानी पर बनती-मिटती रेखा-सा,
मिट-मिटकर दुनिया देखे रोज़ तमाशा।
यह गुदगुदी, यही बीमारी,
मन हुलसावे, छीजे काया।

हम कहते हैं बुरा न मानो,
यौवन मधुर सुनहली छाया।

वह आया आँखों में, दिल में, छुपकर,
वह आया सपने में, मन में, उठकर,
वह आया साँसों में से स्र्क-स्र्ककर।

हो न पुरानी, नई उठे फिर
कैसी कठिन मोहिनी माया!

हम कहते हैं बुरा न मानो,
यौवन मधुर सुनहली छाया।