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"वरदान या अभिशाप? / माखनलाल चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर
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कौन पथ भूले, कि आये ! | कौन पथ भूले, कि आये ! | ||
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स्नेह मुझसे दूर रहकर | स्नेह मुझसे दूर रहकर | ||
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कौनसे वरदान पाये? | कौनसे वरदान पाये? | ||
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यह किरन-वेला मिलन-वेला | यह किरन-वेला मिलन-वेला | ||
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बनी अभिशाप होकर, | बनी अभिशाप होकर, | ||
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और जागा जग, सुला | और जागा जग, सुला | ||
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अस्तित्व अपना पाप होकर; | अस्तित्व अपना पाप होकर; | ||
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छलक ही उट्ठे, विशाल ! | छलक ही उट्ठे, विशाल ! | ||
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न उर-सदन में तुम समाये। | न उर-सदन में तुम समाये। | ||
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उठ उसाँसों ने, सजन, | उठ उसाँसों ने, सजन, | ||
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अभिमानिनी बन गीत गाये, | अभिमानिनी बन गीत गाये, | ||
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फूल कब के सूख बीते, | फूल कब के सूख बीते, | ||
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शूल थे मैंने बिछाये। | शूल थे मैंने बिछाये। | ||
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शूल के अमरत्व पर | शूल के अमरत्व पर | ||
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बलि फूल कर मैंने चढ़ाये, | बलि फूल कर मैंने चढ़ाये, | ||
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तब न आये थे मनाये- | तब न आये थे मनाये- | ||
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कौन पथ भूले, कि आये? | कौन पथ भूले, कि आये? | ||
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19:47, 15 अप्रैल 2009 का अवतरण
कौन पथ भूले, कि आये !
स्नेह मुझसे दूर रहकर
कौनसे वरदान पाये?
यह किरन-वेला मिलन-वेला
बनी अभिशाप होकर,
और जागा जग, सुला
अस्तित्व अपना पाप होकर;
छलक ही उट्ठे, विशाल !
न उर-सदन में तुम समाये।
उठ उसाँसों ने, सजन,
अभिमानिनी बन गीत गाये,
फूल कब के सूख बीते,
शूल थे मैंने बिछाये।
शूल के अमरत्व पर
बलि फूल कर मैंने चढ़ाये,
तब न आये थे मनाये-
कौन पथ भूले, कि आये?