भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ख़ुद से बाहर अब निकलकर देखें / नित्यानन्द तुषार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनूप.भार्गव (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नित्यानन्द तुषार }} <Poem> ख़ुद से बाहर अब निकलकर दे...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
11:25, 20 अप्रैल 2009 का अवतरण
ख़ुद से बाहर अब निकलकर देखें
दूसरों के गम़ भी चलकर देखें
टूटने पर टूट जाएगा दिल
आप सपनों को सँभलकर देखें
रोशनी देते रहे जो कल तक
उनकी खात़िर आज जलकर देखें
ये बहुत मुश्किल सही फिर भी हम
इस जहाँ को ही बदलकर देखें
उनको गिरने से बचा लेना तुम
जो ये सोचें हम फिसलकर देखें